आज कहा आ गया हूँ मैं,
इतने अँधेरे उजाले पहले नहीं देखे,
देखा है अक्सर इंसानों को मिलते हुए,
इतनी हेवानियत वाले पहले नहीं देखे...
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देखा है अक्सर दीये हर मज्हारो पर खुशियों के,
इतने जनाजे पहले कभी नहीं देखे,
देखा है हर वक़्त औरत को मुस्कुराते हुए,
पिए है जो उसने विष के प्याले किसीने नहीं देखे...
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देखा है अक्सर एक ही मज़हब को मैंने,
ऐसे जात-मज़हब के हवाले पहले नहीं देखे,
देखा है अक्सर सबने सुख के संदूक को मेरे,
उसपे लटके दुखों के ताले किसीने नहीं देखे...
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ऐसे नज़रिए वाले नहीं देखे,
इंसानियत को नफरत करने वाले नहीं देखे,
यह कैसी दुनिया बना दी खुदा ने जहा,
हमारे पैरो के छाले किसीने नही देखे...
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देखी है अक्सर रुदाली किसी के जनाजे पर,
उसपे मुस्कुराने वाले नही देखे,
सरेआम लीलम करते है जो सीताओं को यहाँ,
ऐसे खुले आम खुद को रावन बताने वाले नहीं देखे...
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देखे है अक्सर गुलिस्तान सपनो में,
जलते आशियाने नही देखे,
मर गई है अच्छाई कही नज़र नही आती,
खुद को इंसान कहलवाने वाले हमारे-तुम्हारे जैसे नही देखे.
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